Saturday, November 07, 2015

-:तुम्हारी बेरुखी:-




बेरुखी तुम्हारी 
चुभती है दिल को
खोजती है निगाहें
फिर उसी पल को
जब मेरे हर लब्ज
प्यारी थी तुम्हें
एक हंसी को
बेताब रहती थी
सुबह से शाम तक
तुम्हारा पूछ लेना
सबब उदासी का   
अच्छा लगता था
मेरे मन को
टोक देना तुम्हारा
लिखते समय कि
मत लिखो मेरा नाम
दुनियाँ को सब
पता चल जाएगा
यही अपनापन तो
खीच लायी मुझे
तुम्हारे पास
मुकर जाना तो
तुम्हारी आदत न थी
अचानक तुम्हारा
मुख मोड़ लेना
इस कदर
समझ नहीं पाया
शायद तुम्हें
कि तुम तो एक
बसंती बयार हो
महकाकर उपवन को
चली जाती हो
दूर बहुत दूर
सदा सदा के लिए ............
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 14-09-2015

No comments: