वह सजीव तस्वीर
जो मानस पटल में
अंकित है आज तक
जिसे देख भूल जाता
सामने आए सारे
विघ्न बाधाओं को
इस उम्मीद में
कि कोई बात नहीं
कुछ भी होगा
संभाल लिया जाएगा
फिक्र किस बात की
जीते चलो जिंदगी
अपनी राह में
मन की चाह में
न परवाह किसी की
न ज़िम्मेदारी कुछ
बस खुद में जीते रहो
सिर पर हाथ है उनका
फिर गम क्यों
मगर आज ढूंढती है
खामोश निगाहें
वही तस्वीर
अपनी दुनियाँ में
छटपटाते हुए अक्सर
जिनसे बात किए
कई महीने बीत गये
सिवाय दीदार के
ख्वाबों में जब भी
जरूरत महसूस हुई
उनकी उपस्थिति की
दे गये ढेर सारी
ढाढ़स आकुल मन को
जिंदगी जीने की
अपनी दुनियाँ से
जो सबकी -
आखिरी मंजिल है ............
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 20-09-2015
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