Thursday, November 05, 2015

-: अनाम रिश्ता :-





क्या रिश्ता है
मेरा तुमसे
तुम्हारा मुझसे
कुछ भी तो नहीं
फिर क्यों
अक्सर आ जाती हो
मन उपवन में
कली बनकर
महका जाती हो
तन मन
बसंती बयार बन
लहराती हो
अपनी आँचल
होले से
मुस्कुराते हुए  
क्यों बंद करना
चाहती हो
अपने पंखुड़ी आगोश में
एक भँवरा समझ
मेरी तो अब
आदत सी हो गई हो
तुम और तुम्हारी
चुलबुली हरकतें
बगैर जिसके मैं
सूना सूना सा
महसूस करता हूँ
क्या नाम दूँ
इस अनाम रिश्ते का
जो सब रिश्तों से
खूबसूरत और पाक है
जिसे मैं और सिर्फ
तुम समझते हो ..............
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 01-09-2015

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